देवरिया के भाइयों-बहनों, सुनो तो जरा, हमारा इलाका अब तेजी से बदल रहा है क्योंकि Highway विकास का एक बड़ा काम शुरू हो चुका है। नवलपुर से बलिया के सिकंदरपुर तक NH-727B को लगभग 45 किलोमीटर लंबा फोरलेन बनाने का Project चल रहा है, और ये सब उत्तर प्रदेश सरकार की बड़ी योजना का हिस्सा है। इससे न सिर्फ रोजाना सफर करने वाले लोग तेज और सुरक्षित रास्ते पाएंगे, बल्कि हमारे गांवों की अर्थव्यवस्था भी रफ्तार पकड़ेगी, जैसे कि व्यापार बढ़ेगा और नौकरियां आएंगी। ठेकेदारों की टीम रात-दिन जुटकर काम कर रही है, लेकिन कुछ छोटी-मोटी रुकावटें हैं जो इसे थोड़ा धीमा कर रही हैं, फिर भी ये सपना ग्रामीण इलाकों को शहरों से जोड़कर पूरा करेगा।
अभी तक Construction का ज्यादातर हिस्सा मिट्टी भराई तक पहुंच गया है, लेकिन आगे बढ़ने में थोड़ी देर हो रही है। नवलपुर से भागलपुर तक के 16 किलोमीटर में फोरलेन बिछाने की प्लानिंग है, जबकि बाकी हिस्सा टू-लेन ही रहेगा, और लोकल लोग इसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं क्योंकि पुरानी सड़क पर जाम और हादसे रोज की बात हो गई है। सरकार ने बजट तो दे दिया है, करीब 2060 करोड़ रुपये का, लेकिन प्राकृतिक बाधाएं जैसे पेड़ों की समस्या ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। देवरिया के लोग जानते हैं कि ये रोड अपग्रेडेशन से ट्रैफिक सुधरेगा और इलाका जुड़ेगा, जैसे कि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से लिंक होकर बिहार तक आसानी होगी।
वन विभाग की अनुमति: पेड़ कटाई की जटिल प्रक्रिया
देवरिया वालों, बात तो साफ है कि बिना Forest Department की हरी झंडी के एक भी पेड़ पर कुल्हाड़ी नहीं चल सकती, और यही वजह है कि हमारा फोरलेन वाला Highway प्रोजेक्ट अभी अटका पड़ा है। नवलपुर से भागलपुर तक के 16 किलोमीटर में करीब 2000 पेड़ खड़े हैं, जिनको हटाने के लिए ठेकेदार ने एक साल पहले ही Compensation का पूरा पैसा जमा कर दिया था। वन विभाग के अफसर पर्यावरण बचाने के नाम पर पूरी तरह सतर्क हैं, जो बिल्कुल सही भी है, पर इससे काम की टाइमलाइन खिसक रही है और लोकल लोग परेशान हैं। गांव में कई बार मीटिंग हो चुकी, लेकिन फैसला अभी तक लटका हुआ है, सब बस इंतजार ही कर रहे हैं।
ठेकेदार भाई लोग तो Application लिखित में भी दे चुके और मुंह-जबानी भी समझा चुके, पर Response का नाम नहीं। Environmental नियमों का पालन तो बनता है, नहीं तो हम अपने बच्चों को साफ हवा कैसे देंगे? हमारे देवरिया-गोरखपुर के इलाके में ये पुराने सागौन, नीम और पीपल के पेड़ गर्मी में छांव देते हैं और बारिश लाने में भी मदद करते हैं। अगर जल्दी Permission नहीं मिली तो अगली बरसात के बाद फिर मौका गंवाना पड़ेगा, और फिर पूरा साल निकल जाएगा। सबकी दुआ है कि जल्दी कोई बीच का रास्ता निकल आए, ताकि पेड़ भी बचें और सड़क भी बन जाए।
निर्माण कार्य पर पड़े गंभीर प्रभाव
देवरिया के लोगो, ये जो पेड़ों का मसला है ना, इसने पूरा Construction काम ठप कर रखा है, जबकि Machinery की लाइन लगी है और मजदूर भाई तैयार बैठे हैं। जेसीबी, रोलर, ट्रक सब धूप में खड़े-खड़े जंग खा रहे हैं, और ठेकेदार का रोज का Maintenance खर्चा लाखों में चला जा रहा है। ये Delay सिर्फ पैसों की बर्बादी नहीं है, पूरा Project का टाइमलाइन पीछे खिसक रहा है और बजट भी फूल रहा है। हमारे लोकल दुकानदार और ट्रांसपोर्ट वाले कह रहे हैं कि सड़क बन जाए तो माल ढोना आसान होगा, पर अभी तो रुकावट से धंधे पर ही ब्रेक लग गया है, रोज की कमाई मारी जा रही है।
जूनियर इंजीनियर सुमीत कुमार जैसे अफसर रोज Site पर चक्कर लगा रहे हैं, Monitoring कर रहे हैं, पर बिना पेड़ हटे एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते। पुरानी सड़क पर Traffic इतना बढ़ गया है कि हादसे रोज हो रहे हैं, लोग डर-डर के निकलते हैं। सरकार को अब तेजी से कदम उठाना पड़ेगा, नहीं तो ये रुकावट पड़ोसी जिले बलिया और गोरखपुर के कामों पर भी असर डालेगी। सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि कब ये गतिरोध खत्म होगा, वरना देवरिया का सपना फिर साल भर पीछे चला जाएगा।
पर्यावरण संरक्षण और विकास की अनोखी जंग
देवरिया वालों, ये जो सड़क और पेड़ों की लड़ाई चल रही है ना, असल में Environment और विकास की पुरानी जंग है, जो हमारे गांव में सामने आ गई है। एक तरफ Green Cover बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है, क्योंकि साल, सागौन, आम और महुआ जैसे पेड़ हमारी धरती को ठंडा रखते हैं और Biodiversity को जिंदा रखते हैं। हमारे इलाके के एक्टिविस्ट भाई सही कह रहे हैं कि थोड़ा रास्ता इधर-उधर करके भी काम हो सकता है, ताकि जंगल का नुकसान कम हो। ये बात हमें समझा रही है कि असली तरक्की वही है, जो आने वाली नस्लों के लिए भी सांस लेने लायक हवा छोड़े।
गांव के लोग तो इन पेड़ों से दिल से जुड़े हैं, बचपन से इनकी छांव में खेलते आए हैं, गर्मी में यहीं बैठकर चाय पीते हैं। औरतें-बच्चे आम-जामुन तोड़कर खुश होते हैं, इसलिए Local Community का गुस्सा भी जायज है। अब नीति बनाने वालों को Transplantation या दोगुने पेड़ लगाने का प्लान लाना चाहिए, जैसे दूसरे प्रोजेक्ट में हो रहा है। Climate Change का डर तो सबके ऊपर मंडरा रहा है, पर अच्छी सड़क और कनेक्टिविटी भी तो चाहिए ना? असली जीत तब होगी जब हम दोनों को साथ लेकर चलें, यही संदेश देवरिया का ये वाकया पूरे यूपी को दे रहा है।
समाधान की दिशा में कदम: क्या होगा अगला कदम?
देवरिया के भाइयो-बहनो, अब सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि आखिर रास्ता कैसे निकलेगा, और इसका जवाब सिर्फ Stakeholders की एक बड़ी मीटिंग से ही आएगा। Forest Department और Highway वाले अफसर एक मेज पर बैठकर बीच का रास्ता निकालें तो बात बन जाए, ठेकेदारों ने तो पहले ही कह दिया है कि Compensatory Afforestation के तहत दोगुना पेड़ कहीं और लगा देंगे। यूपी सरकार ने पहले भी गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे जैसे कामों में तेजी दिखाई है, इसलिए उम्मीद है कि जल्दी Clearance का ऑर्डर आ जाएगा। बरसात खत्म होते ही मजदूर और मशीनें फिर से दौड़ने को तैयार हैं, बस ऊपर से हरी झंडी चाहिए।
एक्सपर्ट लोग बता रहे हैं कि अब तो Technology इतनी आगे बढ़ गई है कि बड़े-बड़े पेड़ों को जड़ समेत उठाकर दूसरी जगह Transplant कर सकते हैं, और ये तरीका पैसों का भी कम खर्च करता है। साथ ही गांव-गांव में Public Awareness मुहिम चलाई जाए तो हमारे लोग खुद ही पर्यावरण बचाने में आगे आएंगे। ये पूरा Initiative सिर्फ देवरिया की सड़क नहीं, बल्कि पूरे पूर्वांचल को जोड़ने और रफ्तार देने वाला है। अब वक्त कीमती है, अगर देर हुई तो Deadline टूटेगा और फिर साल भर का नुकसान हो जाएगा, इसलिए सबकी दुआ है कि जल्दी कोई पक्का हल निकल आए।
निष्कर्ष
देवरिया के फोरलेन highway प्रोजेक्ट में पेड़ों की बाधा विकास और environment के बीच संतुलन की याद दिलाती है। यह स्पष्ट है कि बिना collaboration के कोई project सफल नहीं हो सकता, और वन विभाग की सतर्कता सराहनीय है। लेकिन देरी से नुकसान हो रहा है, जो हमें sustainable रास्ते तलाशने को प्रेरित करता है। क्या हम ऐसा मॉडल बना पाएंगे जहां प्रकृति और प्रगति साथ-साथ चलें?
पाठकों से सवाल है: क्या आप मानते हैं कि translocation तकनीक ही समाधान है, या नए afforestation प्रयासों से बेहतर? यह बहस हमें बेहतर भविष्य की ओर ले जाएगी, जहां हर निर्णय विचारपूर्ण हो।
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